एरे बीर पौन तेरो सबै ओर गौन, बीरी
तो सौ और कौन मनै ढरकौंहीं बानि दै।
जगत के प्रान ओछे बड़े को समान 'घन-
आनंद निधान सुखदान दुखियानि दै।
जान उजियारे गुनभारे अंत मोही प्यारे
अब ह्वै अमोही बैठे पीठि पहिचानि दै।
बिरह-विथाहि मूरि आँखिन में राखौ पूरि
धूरि तिन पायन की हा हा ! नेकु आनि दै।।